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छत्तीसगढ़राज्य

PG छात्रा प्रताड़ना मामला: डॉ. आशीष सिन्हा को अग्रिम जमानत से इनकार, हाईकोर्ट ने FIR को बताया सही

News Desk
Last updated: 2025/07/26 at 2:56 PM
News Desk
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5 Min Read
PG छात्रा प्रताड़ना मामला: डॉ. आशीष सिन्हा को अग्रिम जमानत से इनकार, हाईकोर्ट ने FIR को बताया सही
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बिलासपुर

मेडिकल की छात्रा को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने के आरोपी डॉक्टर आशीष सिन्हा को हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है. हाइकोर्ट ने आदेश में कहा कि आरोपी ऐसे अपराधों से संबंधित हैं, जो गंभीर और संवेदनशील हैं, जिनमें कार्यस्थल पर एक महिला की गरिमा और शारीरिक अखंडता शामिल है. एफआईआर किसी भी तरह से प्रेरित या विलंबित नहीं लगती है.

मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा की एकलपीठ में हुई. जिसमें याचिकाकर्ता डॉक्टर आशीष सिन्हा ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी. आरोपी डॉक्टर ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर में लगे आरोप को खारिज करते हुए सरकारी कर्मचारी होने और गिरफ्तार किए जाने पर करियर बर्बाद होने की दुहाई दी थी.

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने मामले में दोनों पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया. आरोपी डॉक्टर के अधिवक्ता ने दलील दी कि जब विशाखा समिति की रिपोर्ट निदेशक, चिकित्सा शिक्षा को भेजी गई और आवेदक के खिलाफ कुछ भी नहीं पाया गया, तो शिकायतकर्ता ने आवेदक को किसी भी तरह से फंसाने के लिए एफआईआर दर्ज कराई.

आवेदक की अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण उनके प्रति रंजिश भी थी, इसलिए उनका वजीफा रोक दिया गया था. वह एक सरकारी कर्मचारी हैं, और यदि उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तो उनका करियर बर्बाद हो जाएगा, उन्हें अग्रिम जमानत दी जा सकती है.

दूसरी ओर सरकारी वकील अमित वर्मा ने आवेदक के वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क का विरोध करते हुए कहा कि चूँकि शिकायतकर्ता, जो एक महिला डॉक्टर और पीजी छात्रा भी है, के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से संबंधित है और प्रथम दृष्टया यह पाया गया है कि आवेदक ने ऊपर बताए गए अपराध किए हैं, आवेदक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और मामला जाँच के अधीन है, इसलिए आवेदक अग्रिम जमानत पाने का हकदार नहीं है.

आपत्तिकर्ता/शिकायतकर्ता की ओर से उपस्थित वकील मधुनिशा सिंह ने अग्रिम जमानत आवेदन का कड़ा विरोध करते हुए तर्क दिया कि शिकायतकर्ता एक होनहार छात्रा है, और रूस के एक मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की डिग्री में स्वर्ण पदक विजेता छात्रा है. आवेदक ने शुरू से ही शिकायतकर्ता पर बुरी नजर रखी और गंदी और घटिया टिप्पणियाँ कीं. उसे परीक्षा में फेल करने और उसका करियर बर्बाद करने की धमकी दी गई.

शिकायतकर्ता ने अपने ही विभाग के अधिकारियों के समक्ष शिकायत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो उसे मजबूरन एफआईआर दर्ज करानी पड़ी. विशाखा समिति ने भी पाया है कि आवेदक अपने ऊपर लगे आरोपों में दोषी है. इससे पहले सिकल सेल संस्थान, छत्तीसगढ़ के अधिकारियों और महिला कर्मचारियों ने आरोपी डॉक्टर के खिलाफ महिलाओं को परेशान करने, गाली देने और अभद्र व्यवहार करने की शिकायत दर्ज कराई थी. इसके अलावा वित्तीय अनियमितताएं करने का भी आरोप है.

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुना और केस डायरी का अवलोकन किया और आदेश में कहा आवेदक के विरुद्ध लगाए गए आरोप अत्यंत गंभीर प्रकृति के हैं. केस डायरी के साथ संलग्न दस्तावेजों से पता चलता है कि शिकायतकर्ता द्वारा आवेदक के विरुद्ध कई शिकायतें की गई थीं, और विभाग की विशाखा समिति ने भी एक जाँच की है.

रिपोर्ट में यद्यपि इस आशय का कोई प्रत्यक्ष निष्कर्ष नहीं है कि आवेदक अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों का दोषी है, तथापि, व्हाट्सएप चैट के स्क्रीनशॉट से ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक ने शिकायतकर्ता पर टिप्पणी करने का प्रयास किया है, जो एक चिकित्सक जैसे महान पेशे के लिए, और वह भी विभागाध्यक्ष होने के नाते, अनुचित था.

कोर्ट ने आदेश में कहा कि आवेदक द्वारा गवाहों को प्रभावित करने, साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने या निष्पक्ष जाँच में बाधा डालने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. प्राथमिकी किसी भी तरह से प्रेरित नहीं लगती है, और उसमें घटनाओं का वर्णन प्रथम दृष्टया मामला दर्शाता है. आदेश में जाँच के प्रारंभिक चरण में है, और इस स्तर पर केस डायरी में उपलब्ध सामग्री के आधार पर अग्रिम जमानत खारिज की जाती है.

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